रहु धरती माँ के संग, Village Life, Living With Nature


















जानते है एक गांव है

नदी किनारे बसा हुआ 

बांस ओर पाकड़ के 
                                                                                        
पेड़ से घिरा हुआ

प्राचीन मंदिर लाल कुआ

पहचान पुरानी लिए हुआ

आम के बाग महुआ के पेड़
                                                    
खेत खलियआन से सजा हुआ

सावन में बारिश का शोर 

पगडंडी पे नाचे मोर

ठंडी में छीमी की खेती

घर घर बनती घुघरी रोटी

गरमी में पके आम की दाल

संग सत्तू भौरी चोखा अचार

पतझड़ में है बेल का रस

चना चबैना गुड़ और चिवड़ा

चूल्हे पर है मोटी रोटी

उसकी तयारी शाम से होती

लकड़ी काटो ऊपरि लाओ

गोधूलि बाद रसोई लगाओ

नौ बजे लग गई है खटिया 

पांच बजे फिर उठना भैया 

की किसानी फसल लगी

घर की ऐसे बर्कत्त  हुई

गाए गोरू भी रहते घर में

सामान्य और खुशहाल जिंदगी

रहना चाहु गाँव मैं

बैठु किसी तरुवर की छाँव मैं

देखु जीवन के असली रंग

रहु धरती माँ के संग


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