पलाश पुष्प शंका सम थार का ग्रह मस्तकम रौद्रंम रौद्रात्मकंम गौरंम,
तं केतुम प्रणमाम्यहम अष्टभुजाय विदमहे सूलहस्ताय धीमहि तन्नो केतु प्रचोदयात।।
केतु : मुक्ति, प्यास, जिज्ञासा, सबकुछ और कुछनही ।।
आज़ादी का बादल हो या खयालो का धुआँ
मौजूदगी है हर जगह पर ध्यान है कहा ?
देने वाला (केतु ) गृह है जो , आध्यात्मिक गृह है वो
अपना ध्वजा फहराने वाला देश विदेश घूमनेवाला
आंखों से जो देख न पाए , लालच अभिमान कभी न भाए
सेवा भाव, ईश्वरीय भक्ति अध्यात्म जिसको अत्यंत भाए
जड़ से जो है जुड़ा हुआ, प्रकृति में समां हुआ
कुलदेवता और पित्तरो का आशीर्वाद लिया हुआ
जो अंतर्मन में झाँक न पाया, चैन उसको कहीं न आया
ज्ञात हुआ जब खुद का उसको तभी वो ज्ञानी कहलाया