जिंदगी रही सफर में
सफर ही जिंदगी रहा
कभी अकेले रहे हम
कभी साथ किसी का मिल गया ।
बीता सफर यूँ जैसा के
पलकें झुकी मेरी
आंखें खुली तो पाया
हाथों से लकीरें ही मिट गयी ।
मिले सफर में जो मेरे अपने ख़ास थे
मूँद लू आंखें तो चेहरे वही दिखे
छूट गए जो सफर में वो भी अज़ीज़ थे
हम कुछ नहीं थे उनके पर वो मेरे करीब थे !
ज़िन्दगी सफर में खुद से रूबरू कराती रही मुझे
है सफर ही ज़िन्दगी बस बताती रही मुझे
जो मिल गया मुझे वो भी मेरा नहीं
बस इसी बात का एहसास कराती रही मुझे !
zindgi bhot khubsurt hai.... bss apki poem pdne ko milti rhe...k
ReplyDeleteज़िन्दगी...
ReplyDeleteहर एक शख्स के लिए इसका अलग अर्थ है।
हर कोई इसे अपने शब्दों में बयां करता है।
सतीश।
Wow poem
ReplyDeleteBeautiful Poem❤❤❤❤😊😊😊😊
ReplyDeleteKya baat 🥲🥲
ReplyDeleteVery nice 💕
ReplyDeleteAmazing ....Soothing Voice
ReplyDeleteज़िन्दगी सफर में खुद से , रूबरू कराती रही मुझे !
ReplyDeleteहै सफर ही ज़िन्दगी , बस बताती रही मुझे !!
Thanku all for precious comments
ReplyDeleteBeautiful 😊😊🤗
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