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Wednesday, September 15, 2021

रास्ते का पत्थर- RAASTE KA PATTHAR

 रास्ते का पत्थर


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** रास्ते का पत्थर  **


है पसंद तेरे रास्ते का पत्थर 

जो दिखता है मुझे तेरे घर की सड़क पर

हटाता हूँ रोज़ सुबह उसको जाकर 

पर पुनः पाता हूँ उसको उसी जगह पर 


जानता हूँ पत्थर के पैर नहीं होते 

जाने कैसे वो दूरी तय करते 

है उसको भी तेरी आदत पड़ी 

रहना है उसे तेरी ही गली 


है अचरज मुझे ये जान के बड़ा 

के पत्थर ने भी क्या प्यार कर लिया 

अब ना देखा जा रहा के ठोकरें उसको लगे

अपना लो उसे जो राह में तेरी खड़े


है शिकायत मुझे तुमसे बहुत 

के चाहने वाले दुनिया में कम बहुत 

है बड़ी किस्मत जो कोई तुझसे प्रेम करे 

यूँ ही नहीं श्री कृष्ण सुदामा से जा मिले 


चाहता हूँ  उठा लो तुम रास्ते का पत्थर 

मान लो उसे अपना रखदो आँगन में जाकर 

क्या ज़रूरी है इन्सान से ही प्रेम करना 

प्रेम तो है पत्थर में भी भगवान देखना।  

          

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