तेरी आँखों की नमी मेरी आँखों में है
अनकहे अल्फ़ाज़ तेरे मेरे ज़हन में है
बालो से गिरा फूल अब भी किताबो में है
माफ कीजिए कहते हुए अल्फ़ाज़ खयालो में है
हर शाम ढलते सूरज के इंतज़ार में है
राह देखता है कोई इस विश्वास में है
हाथ उठते है जिसके दुआ मंगाने के लिए
उन लकीरों में मेरा नाम तो है
कसमें खाई थी साथ रहने की कभी
बेशक उन कसमों पे ऐतबार तो है
कहने को तो ज़िन्दगी अकेले गुजार दी
सजाने को तेरी यादो का गुलिस्तांन तो है
लेके चले है अपने खव्बो का आस्मां
साथ देने के लिए ये चाँद तारे तो है
कह दिया है हाले दिल चुपके से कान में
सुन ने के लिए पूरी कायनात तो है
