है एक कहानी तोतू की
मेरे प्यारे से तोते की
मिला था अँधेरी रात में
फसा था किवाड़ की आड़ में
था बस महीने भर का सहमा हुआ
सोचा क्या करू अब इसका
लपेटा दुप्पटे में फिर सहलाया
प्यार से उसको लकी तोतू बुलाया
फिर रखा उसको एक जूते के डब्बे में
दिए दाने चने के प्याली में
हथेली से छोटा नन्हा सा परिंदा
कभी मारु सिटी कभी ताली बजाउ
फेरु ऊँगली उसपे लकी लकी दुहराऊ
दी दवाई उसको घायल मिला था
चौबीस घंटे में एक बार बोलता था
आदत मुझे उसकी होने लगी थी
अकेली से दुकेली होने लगी थी
तीन महीने में लकी ने उड़ना सीखा
खिड़की दरवाजे पे चढ़ना सीखा
मिल गया था खिलौना जैसे मुझे
अब नहीं थी ज़रूरत किसी की मुझे
दिन बीते उसकी बोली को सुनते
रहता संग मेरे छुपता फुदकते
लाल रंग का मुँह और पूरा हरा था
छोटे से पंखो को प्यार से फेरता था
गोद में लेके बैठी थी मक्के के दाने
बुलाया उसे वो लगा पंख फ़ैलाने
देखते देखते छत पे उड़ गया वो
बुलाया बहुत पर न लौटा कभी वो
बहुत रोइ पछताई लकी लकी चिलायी
निरमोही ने न कोई सिटी बजाई
हुए तीन माह उसे घर से गए
न जाने क्यू ऑंखें उसकी राह तके
खाली है पिंजरा और सूनी अटारी
बैठा होगा किसी अमुआ की डारी
उड़ने को मिला खुला आसमान है
रहने को मिली हरे पत्तो की छाव है
यही ज़िन्दगी उसकी अपना जहाँ है
परिंदो के लिए ही बना आसमान है। ।
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