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कॉंच का टुकड़ा # KAANCH KA TUKDA # Memories Of Past

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             कॉंच का टुकड़ा ********************************************* ये दर्पण मुझसे अब खेलने लगा  बीते समय में मुझे  ले जाने लगा  हटती नहीं है नज़र इससे अब  मुझे मेरे अतीत से मिलाने लगा  ।  कभी माँ की ममता से मिला दिया  और पलकों को मेरी भिगो दिया।  कभी  बचपन मुझे फिरसे दिखा दिया  जिसको भूले मुझे एक ज़माना हुआ  ।  कभी पुराने दोस्तो से मिला दिया  बिंदास ज़िन्दगी को दिखा दिया।  कोई हसीं खवाब जैसे में देखने लगी  फिर न आईना से मेरी नज़रे  हटी।  मुस्कुराती हुई एक छवि भी दिखी  साथ रहने के जिसके संग कस्मे हुई कैसे बीते थे दिन कैसे बीती थी रात  दर्पण भी खुश था देख के ऐसा प्यार।  एक सजी हुई दुल्हन भी मुझको दिखी   भूल बाबुल का घर जो पी घर चली।  जो  बंधी थी बस प्यार के बंधन से ही  जानती थी बस प्रेम की भाषा को ही।  थे अरमान जिसके बस मिलके चले  बीती ज़िन्दगी को भूल बस खुश रहे।  क्या पता था अंजाम क्या होगा ? शीशा जिसके साथ खे...