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क्या करे ! |
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क्यों इतना समझ लिया
के कुछ कहना ही न पड़े
अब दिले हाल तो ठीक है !
अपनी शिकायतों का क्या करे ?
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क्या करे ! |
इन ऊंचे पर्बतो की दोस्ती है दरख्तों से मिल रहे है गले अपने अपनों से समायी है पेड़ो की जड़े पर्बतो में इस तरह कुम्हार गूंधता है मिटटी को पानी...