अधूरा हो के भी पूरा हुआ है
कृष्णा तुम संग इश्क़ ऐसा हुआ है
है गजरे में जैसे समायी खुशबू
मुझ में तू ऐसे समाया हुआ है
जैसे चाँद संग रहते है तारे सितारे
नाचे मोर सावन में पपीहा पुकारे
करे कुहू कोयल और बदरा घिरआये
इन्ही बीच हम भी नभ बन बरस जाये
मिल मिटटी में खुशबू कभी अलग न हो पाए
बन नदिया की लहरें सागर से मिल जाये
हर रूप में बिखरा है प्रेम अपना
जो राधा कृष्णा को अलोकिक कर जाये