Tuesday, August 03, 2021

शहर तेरा - हिंदी कविता

 शहर तेरा

  




*****************************************


छोड़ आये हम शहर तेरा

देखी सारी झूठी खुशियां

रंग ही फूलों से अलग हुए 

है, बस चेहरे पे चेहरा



झूठी ही तस्सली देनी है

बस अपनी -अपनी कहनी है 

सच क्या है ये पता नहीं 

अपने सिवा  कोई दिखा नहीं 


अब क्या कहे  तुझसे नादान !

के तू आज भी है "अनजान"।  



17 comments:

  1. झूठी.. एक उम्र गुज़ार दी ,

    जो ना थी खबर.. वो छाप दी।



    कहने को तो.. हम सब कुछ थे ,

    पर फिर भी.. तेरी पदवी जान लीया
    कहने को तो.. हम सब कुछ कहे,

    ReplyDelete
  2. क्या क्या मन मे भाव आ जाते है आप सब ही ब्याखान कर सकती हैं हम कि मजाल क्या है, बहुत सुंदर रचना विनीता जी आप कि है

    ReplyDelete
  3. Kya khoob kalakara hain aap 💙

    ReplyDelete
  4. सच क्या है - ये पता नहीं झूठी ही- तस्सली देनी है,

    बस अपनी -अपनी कहनी है

    ReplyDelete
  5. झूठी ही- तस्सली देनी है,

    बस अपनी -अपनी कहनी है

    ReplyDelete
  6. झूठी ही- तस्सली देनी है,

    बस अपनी -अपनी कहनी है क्या खूब लिखा है ने बहुत सुंदर वहा वाह

    ReplyDelete
  7. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete
  8. Keep on writing👌🏻👌🏻👌🏻👍🏻

    ReplyDelete

Favourites

किस्मत # Luck #Gratitude

कुछ ऐसे  किस्मत आज़मायी है  के बुराई में भलाई है हर ठोकरे है सबक हर बेज़्ज़ती भुलाई है  किस्मत के फैसलों पे हामी है बाकि तो बातें बेमानी है जो ...