Wednesday, August 28, 2024

कबीर के दोहे #Kabir Ke Dohe

 


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जब मैं था वो नाही 

अब वो है मैं नाही

प्रेम गली इतनी सांकरी

इसमें दो न समाही ||

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पर्बतो की दोस्ती है दरख्तों से # Nature'Love # गले लगा लू आज़ादी #श्रृंगार हुआ धरती का चमक रही बनके हरियाली #आज़ादी

इन ऊंचे पर्बतो की दोस्ती है दरख्तों से मिल रहे है गले अपने अपनों से  समायी है पेड़ो की जड़े पर्बतो में  इस तरह कुम्हार गूंधता है मिटटी को पानी...

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