निश्चल प्रेम | NISCHAL PREM | इक्तफाक़ | IKQTAFAQ | HINDI POETRY ON LOVE & REALITY
इक्तफाक़ हुआ ऐसा
कोहरा आंखों से छटा ऐसा
देखा था जो आईना बरसो
उस चेहरे से दिल भरा ऐसा
ओझल होते ही चेहरे के
मन की आँखें खुली
कोई तम्मना कोई उम्मीद
रह न गयी
शीशे का क्या ?
उसने तो चेहरा दिखाया
मन को भरमा के उसे प्रेम बताया
लेकिन ,
निश्चल है प्रेम और उसकी भाषा
पूंजी ऐसी जिसको सबने अपनाया
न खोने का डर न पाने की इच्छा
न जात - पात और द्वेष किसी का
परवाह जिसमे एक दूजे की रहे
और खुद से पहले तुम्हारा ध्यान रहे।

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