Monday, December 01, 2025

तेरी आँखों की नमी मेरी आँखों में है Poetry On Love &Trust

















तेरी आँखों की नमी मेरी आँखों में है
अनकहे अल्फ़ाज़ तेरे मेरे ज़हन में है

बालो से गिरा फूल  अब भी किताबो में है
माफ कीजिए कहते हुए अल्फ़ाज़ खयालो में है 

हर शाम ढलते सूरज के इंतज़ार में है
राह देखता है कोई इस विश्वास में है

हाथ उठते  है जिसके दुआ मंगाने के लिए
उन लकीरों में मेरा नाम तो है

कसमें खाई थी साथ रहने की कभी 
बेशक उन कसमों पे ऐतबार तो है

कहने को तो ज़िन्दगी अकेले गुजार दी
सजाने को तेरी यादो का गुलिस्तांन तो है 

लेके चले है अपने खव्बो का आस्मां
साथ देने के लिए ये चाँद तारे तो है

कह दिया है हाले दिल चुपके से कान में
सुन ने के लिए पूरी कायनात तो है  



 




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